सिनेमा टोक लेखांक 5, शोले भाग-2, नॉन स्टॉप राइटिंग चेलेन्ज भाग-10
सिनेमा टोक भाग-5, नोनस्टोप राइटिंग चेलेंज भाग-10
शोले भाग-2
दोस्तो, पहले भाग मे हमने संजीव कुमार, धर्मेन्द्र और हेमा मालीनी के बारे मे पढा अब आगे और कलाकारो के बारे मे जानते है...
दुसरे कलाकारो के बारे मे लिखने से पह्ले इतना लिखना उचित समजता हु की
हेमा मालीनी के बारे मे एक बात रह गइ थी वो बताना जरुरी समजता हु। हेमा मालीनी
केवल एक एक्ट्रेस है जिन्होने कपुर ब्रधर्स के साथ बतौर मुख्य एक्ट्रेस काम किया
है।
राजकपूर के साथ ‘सपनो का सौदागर’, शम्मी कपूर के साथ ‘अन्दाज’ और शशी
कपूर के साथ ‘अभिनेत्री’, ‘त्रिशुल’. ‘दो और दो पाच’, ‘जहा प्यार मिले’ और भी बहुत
सी है। वैसे हेमा मालीनी एक्ट्रेस हो और राज, शम्मी या शशी उस फिल्म मे उस के
सामने मुख्य हीरो न हो वैसी तो अनगीनत फिल्मे भी है। इस के अलावा कपूर फेमिली के
‘रणधीर कपूर’ के साथ ‘हाथ की सफाइ’ फिल्म मे भी बतौर मुख्य हीरोइन काम किया है।
उतना ही नही ‘हाथ की सफाइ’ फिल्म मे हेमा ने अपनी आवाज मे एक गीत भी गाया है किशोर
कुमार के साथ। गीत के बोल है ‘पीनेवालो को पीने का बहाना चाहिये...’ वैसे बहुत ही
बेसुरा गाया है हेमा ने फिर भी बतौर प्ले बेक सिंगर ये उन का पहला और आखरी गाना भी
है।
चलिये हमारी यात्रा और आगे बढाते है...
1.
अमजद खान : जन्म: 21 अक्तुबर 1943 (लाहोर, हाल पाकिस्तान)
म्रुत्यु : 27 जुलाइ 1992 (मुम्बइ)
अमजद खान जाने माने एक्टर ‘जयंत’ के सुपुत्र थे। अमजद खान जाने माने
निर्देशक के. आसिफ के सहायक रह चुके थे। उन के साथ अमजद खान ने सब से पहली फिल्म
‘लव एंड गोड’ की और उस के बाद चेतन आनंद (देव आनंद के भाइ) की फिल्म ‘हिन्दुस्तान
के कसम’ फिल्म मे एक पाकिस्तानी पायलट की छोटी भुमिका की। ये दो भुमिकाये न तो
बोलीवुड को याद है और न अमजदखान को इस तरह की छोटी भुमिकाये थी।
इसिलिये उन की पहली फिल्म ‘शोले’ ही गीनी जाती है। वास्तव मे शोले का
मुख्य विलन ‘गब्बर सिंघ’ का रोल काफी इंटरेस्टिंग था। ये भुमिका सब से पहले डेनी
डेंन्जोंग़पा को ओफर की गइ थी। लेकिन डेनी उस वक़्त फिरोज खान की ‘धर्मात्मा’ मे
बीजी थे। बाद मे शत्रुग़्न सिन्हा को ओफर की गइ। आलसस्य परमो धर्म के नाते शत्रुघ्न
सिन्हा ने ये ओफर नकार दी और सलीम-जावेद को अमजद खान का नाम रीफर किया गया (हाला
की बाद मे जय की भुमिका के लिये शत्रुघ्न ने बडी कोशिश की लेकिन तब तक सलीम-जावेद
ने दिग्दर्शक रमेश सिप्पी को ‘जंजीर’ दिखाकर और धर्मेन्द्र की सिफारिश की वजह से
अमिताभ बच्चन को फाइनल कर लिया गया था। बाद मे शत्रुघ्न ने धर्मेन्द्र को शिकायत
भी करी लेकिन धर्मेन्द्र ने बोला की पहले अमिताभ आये थे तो उन का चांस लग गया (ये
बात ‘आप की अदालत’ मे धर्मेन्द्र ने खुद रजत शर्मा को बताइ है)।
वास्तव मे सलीम-जावेद ने गब्बर के लिये अमजद खान को रीजेक्टॅ कर दिया
था। लेकिन रमेश सिप्पी ने अमजदखान को एक नाटक मे देख लिया था सलीम-जावेद ने आखरी
कोशिश ये करी की सिप्पी को ये बहाना बताया की गब्बर जैसे विलेन के लिये अमजद की
आवाज बहुत पतली है। वैसे भी अमजद ने ये रोल के लिये गभराकर पहले मना कर दिया था।
बाद मे उसे स्टारकास्ट पता चली तो वो राजी हो गये लेकिन तब तक सलीम-जावेद बीच मे आ
चुके थे। आखिर मे एक बार अमजद ने सेट पर आते ही ऐसे डायलोग्स बोल लिये की
सलीम-जावेद भी राजी हो ही गये।
वैसे गब्बर के रोल के लिये अमिताभ, संजीव कुमार सब लाइन मे लगे ही थे।
लेकिन आखिर किस्मत अमजदखान की फेवर कर रही थी। और इतिहास रच ही गया। आज भी लोग
अमजदखान को केवल ‘गब्बरसिंघ’ के नाम से ही पहचानते है।
शोले के अलावा अमजद खान ने “कुर्बानी” “लव स्टोरी” “चरस” “हम किसी से कम नही ” “इनकार” “परवरिश” “शतरंज के खिलाड़ी” “देस-परदेस” “दादा"“ गंगा की सौगंध ” “कसमे-वादे” “मुक्कदर का सिकन्दर” “लावारिस” “हमारे तुम्हारे ” “मिस्टर नटवरलाल” “सुहाग ” “कालिया” “लेडीस टेलर” “नसीब” “रॉकी” “याराना” “सम्राट” “बगावत” “सत्ते पे सत्ता” “जोश” “हिम्मतवाला” आदि सैकंडो फिल्मो में यादगार भूमिकाये की | अमजद खान शराब और अन्य बुरी आद्तो से कोशो दूर थे |
अमजद खान ने अपने लंबे करियर में ज्यादातर नकारात्मक भूमिकाएँ निभाईं। अमिताभबच्चन, धर्मेन्द्र जैसे सितारों के सामने दर्शक उन्हें खलनायक के रूप में देखना पसंद करते थे और वे स्टार विलेन थे। इसके अलावा उन्होंने कुछ फिल्मों में चरित्र और हास्य भूमिकाएँ अभिनीत की, जिनमें शतरंज के खिलाड़ी, दादा, कुरबानी, लव स्टोरी, याराना प्रमुख हैं। निर्देशक के रूप में भी उन्होंने हाथ आजमाए। चोर पुलिस (1983) और अमीर आदमी गरीब आदमी (1985) नामक दो फिल्में उन्होंने बनाईं, लेकिन इनकी असफलता के बाद उन्होंने फिर कभी फिल्म निर्देशित नहीं की।
पर्दे पर खलनायकी के तेवर दिखाने वाले अमजद निजी जीवन में बेहद दरियादिल और शांति प्रिय इंसान थे। अमिताभ बच्चन ने एक साक्षात्कार में बताया था कि अमजद बहुत दयालु इंसान थे। हमेशा दूसरों की मदद को तैयार रहते थे। यदि फिल्म निर्माता के पास पैसे की कमी देखते, तो उसकी मदद कर देते या फिर अपना पारिश्रमिक नहीं लेते थे। उन्हें नए-नए चुटकुले बनाकर सुनाने का बेहद शौक था। अमिताभ को वे अक्सर फोन कर लतीफे सुनाया करते थे।
एक कार दुर्घटना में अमजद बुरी तरह घायल हो गए। एक फ़िल्म की शूटिंग के सिलसिले में लोकेशन पर जा रहे थे। ऐसे समय में अमिताभ बच्चन ने उनकी बहुत मदद की। अमजद ख़ान तेजी से ठीक होने लगे। लेकिन डॉक्टरों की बताई दवा के सेवन से उनका वजन और मोटापा इतनी तेजी से बढ़ा कि वे चलने-फिरने और अभिनय करने में कठिनाई महसूस करने लगे। वैसे अमजद मोटापे की वजह खुद को मानते थे। उन्होंने एक साक्षात्कार में बताया था कि- "फ़िल्म ‘शोले’ की रिलीज के पहले उन्होंने अल्लाह से कहा था कि यदि फ़िल्म सुपरहिट होती है तो वे फ़िल्मों में काम करना छोड़ देंगे।" फ़िल्म सुपरहिट हुई, लेकिन अमजद ने अपना वादा नहीं निभाते हुए काम करना जारी रखा। ऊपर वाले ने मोटापे के रूप में उन्हें सजा दे दी। इसके अलावा वे चाय के भी शौकीन थे। एक घंटे में दस कप तक वे पी जाते थे। इससे भी वे बीमारियों का शिकार बने। मोटापे के कारण उनके हाथ से कई फ़िल्में फिसलती गई। 27 जुलाई, 1992 को उन्हें दिल का दौरा पड़ा और दहाड़ता गब्बर हमेशा के लिए सो गया। अमजद ने हिन्दी सिनेमा के खलनायक की इमेज के लिए इतनी लंबी लकीर खींच दी थी कि आज तक उससे बड़ी लकीर कोई नहीं बना पाया है।
डिम्पल कपाड़िया और राखी अभिनीत फ़िल्म 'रुदाली' अमजद ख़ान की आखिरी फ़िल्म थी। इस फ़िल्म में उन्होंने एक मरने की हालात में पहुंचे एक ठाकुर की भूमिका निभाई थी, जिसकी जान निकलते-निकलते नहीं निकलती। ठाकुर यह जानता है कि उसकी मौत पर उसके परिवार के लोग नहीं रोएंगे। इसलिए वह मातम मनाने और रोने के लिए रुपये लेकर रोने वाली रुदाली को बुलाता है।
फिल्म फेयर के दो एवार्ड अमजद खान को
मिले थे 1986 मे फिल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ हास्य पुरस्कार ‘मा कसम’ फिल्म के लिये और 1982
मे ‘याराना’ फिल्म के लिये फिल्म फेयर सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता। आज तो अमजदखान
नही है लेकिन गब्बरसिंघ के रुप मे हमेशा हमारे दिलो दिमाग मे छाये रहेंगे।
2.
जगदीप जन्म: 29 मार्च 1939 और म्रुत्यु 8 जुलाइ 2020
मुल नाम था सैयद इश्तियाक
अहमद जाफरी।
जगदीप वैसे तो
‘शोले’ की वजह से आजीवन ‘सुरमा भोपाली’ के नाम से ही मशहुर रहे है। लेकिन आज की
पीढी के लिये शायद ये नाम अजनबी हो इसिलिये यहा बताना जरुरी समजता हु की जगदीप आज
के मशहुर कलाकार जावेद जाफरी के पिता है। और चेनल मे आते डांन्स शो मे सर्वप्रथम
हीट डांन्स शो ‘बुगी वुगी’ जो दोनो भाइ होस्ट करते थे वे दोनो जावेद जाफरी और
नावेद जाफरी के पिता जगदीप है। जावेद जाफरी का परिचय दे तो मशहुर फिल्म श्रुंखला ‘धमाल’
मे जो अर्शद वारसी के इन्नोसेंट भाइ का रोल करता है वो है जावेद जाफरी। जावेद
जाफरी की पहली फिल्म थी 1985 की ‘मेरी जंग’ जिस मे साउथ की सुपरस्टार खुश्बु के
साथ ‘बोल बेबी बोल’ गीत के रोक एंड रोल डांस से काफी मशहुर हुवे थे और यही फिल्म
से ‘अनिल कपूर’ भी प्रख्यात हुवे थे। आज तो जावेद जाफरी के बेटे ‘मीझान जाफरी’ भी
बोलीवुड मे लौंच हो चुके है फिल्म ‘मलाल’ 2019 से और अभी अभी मीझान की एक और फिल्म
आ चुकी है ‘हंगामा-2’।
जगदीप ने बतौर हीरो
से अपनी फिल्म केरियर की शुरुआत की थी 1953 की फिल्म ‘दो बीघा जमीन’ से और उस की
एक फिल्म काफी हिट रही है ‘भाभी’ (1957)। भाभी फिल्म का एक गीत काफी सुपरहिट हुवा
था ‘चली चली रे पतंग मेरी चली रे...’
‘शोले’ जब बन रही थी
तब स्टोरी पुरी वायोलेंट थी। सेंसर बोर्ड से पास हो या न हो ऐस सब को लगता था
इसिलिये सलीम-जावेद ने भोपाल मे एक बीजनेसमेन सुरमा भोपाली को पहेचानते थे।
इसिलिये शोले मे ‘सुरमा भोपाली’ केरेक्टर का जन्म हुवा। और ‘सुरमा भोपाली’
केरेक्टॅर को जगदीप ने बखुबी निभाया। लेकिन ये फिल्म 3 घंटे और 40 मिनिट की हो गइ
थी और इस की लम्बाइ कम करने के लिये जगदीप और असरानी का कोमेडी वर्जन काट दिया गया
था। जब शोले रीलीज हुइ तब भारत मे प्रधानमंत्री इन्दीरा गांधी ने ‘इमरजंसी’ जाहेर
की थी। और वैसे भी शोले के पहले तीन वीक फिल्म काफी फ्लोप रही।
उस वक़्त राजश्री
प्रोडक्शंस वाले बडजात्या साहब रमेश सिप्पी के पास आये और फिल्म की लंबाइ और कम
करने की सलाह दी। इसिलिये ये कोमेडी सीन्स काट लिये गये थे। लेकिन पंजाब मे जब ये
फिल्म रीलीज करनी थी उस वक़्त ये कोमेडी सींन्स वापस जोड दिये गये और फिल्म मे ये
दो पात्र सुरमा भोपाली और अंग्रेजो के जमाने के जेलर हमेशा के लिये अमर हो गये।
1988 मे जगदीप ने
खुद ‘सूरमा भोपाली’ नाम की फिल्म बनाइ लेकिन सुपर फ्लोप रही।
जगदीप ने बताया था- मैं जावेद
के पास गया। उन्होंने लंबे डायलॉग को बड़ी आसानी से पांच लाइनों में समेट दिया।
मैंने कहा तुमने तो कमाल ही कर दिया। इसके बाद हम रोज शाम को बैठकर किस्से और
कहानियां कहते। एक बार उसने बीच में कहा कि क्या जाने किधर कहां-कहां से आ जाते
हैं। मैंने पूछा कि अरे यह लहजा कहां से लाए हो, उन्होंने कहा कि यह भोपाल का है। मैंने कहा यह तो मैंने कभी नहीं
सुना। यहां भोपाल का कौन है। उन्होंने कहा कि भोपाल की औरतों का लहजा है। वह ऐसे
ही बात किया करती हैं। और जगदीप ने ये वाक्य शोले मे सुरमा भोपाली की जबान मे
इस्तेमाल कर लिया और हमेशा के लिये अमर हो गये।
3.
असरानी : जन्म: 01 जनवरी 1941 जयपुर
(राजस्थान) हाल आयु : 81 साल
मुल नाम: गोवर्धन असरानी, राजस्थान महाविध्यालय
मे शिक्षा प्राप्त की और बाद मे भारतीय फिल्म और टीलीवीजन संस्थान, पुणे से अभिनय
की शिक्षा प्राप्त की।
1967 मे ‘हरे काच की चुडिया’ उन की पहली फिल्म थी।
1969 मे ‘सत्यकाम’ मे उन्हे धर्मेन्द्र, संजीव कुमार और अशोक कुमार के साथ काम
करने का मौका मिला। बाद मे आज तक अनगीनत फिल्मो मे असरानी ने कोमेडी रोल्स किये
है।
वैसे बहुत कम दर्शको
को पता होगा की असरानी गुजराती फिल्मे जीसे प्यार से ‘ढोलीवुड’ कहा जाता है वहा
अरुना इरानी के साथ मुख्य हीरो के रुप मे बहुत सी फिल्मे की है। 1974 मे ‘अमदावाद
नो रीक्षावालो’ (गुजराती फिल्म जिस का हिन्दी अनुवाद है ‘अहमदाबाद का रीक्षावाला)
फिल्म का दिगदर्शन भी किया। इतना ही नही हिन्दी फिल्मे ‘चला मुरारी हीरो बन ने’,
‘सलाम मेमसाब’, ‘दिल ही तो है’, ‘उडान’ जैसी फिल्मो का भी दिगदर्शन किया।
‘आलाप’ फिल्म मे
असरानी ने दो गाने भी गाये जो उन्ही के उपर फिल्माये गये थे। और ‘फुल खिले है
गुलशन गुलशन’ 1978 की फिल्म मे असरानी ने मशहुर गायक किशोरकुमार के साथ भी गाना
गाया है।
1973 मे ‘अनहोनी’
फिल्म के लिये ‘शमा-सुष्मा सर्वश्रेष्ठ हास्य अभिनेता का पुरस्कार और 1974 मे ‘आज
की ताजा खबर’ और 1977 मे ‘बालिका बधु’ फिल्मो के लिये फिल्म फेयर सर्वश्रेष्ठ
हास्य अभिनेता पुरस्कार भी असरानी को प्राप्त हुवा है।
केवल हास्य ही नही
बल्की कुछ गंभीर भुमिकाये भी फिल्मो मे असरानी ने निभाइ है। जैसे पहले भी मै बता
चुका हु असरानी की जैलर की भुमिका भी बाद मे शोले मे जुडी गइ थी। लेकिन असरानी को
ख्याति इस जैलर के दो फेमस कोमेडी द्रश्य से ही मीली थी। 1980 के दशक मे जब
श्रीदेवी बोलीवुड मे आइ उस वक़्त की फिल्मो मे असरानी और अमजदखान की जोडी की कोमेडी
काफी विख्यात हुइ थी।
अब बात करते है बोलीवुड
के प्रथम स्क्रिन राइटर सलीम-जावेद की।
1.
सलीम खान: जन्म: 24 नवम्बर
1935 (हाल आयु:86 साल), इन्दौर (मध्य प्रदेश)
मुल नाम: सलीम
अब्दुल रशीद खान
सलीम खान ने पहली
शादी सुशीला चरक नाम की मराठी महिला से की जिन का मुस्लिम नाम रखा गया ‘सलमा’। ये
शादी हुइ थी 18 नवम्बर 1964 को। जिन से तीन बेटे अरबाज खान, सलमान खान और सोहैल
खान और एक पुत्री अल्वीरा खान है।
उस के बाद रंगून,
बर्मा (हाल म्यानमार) से भागी हुइ नर्तकी हेलेन एन. रिचर्डॅसन से दुसरी शादी की जो
विख्यात केब्रेट डांसर ‘हेलन’ के नाम से विख्यात हुइ। 1981 मे ये शादी हुइ थी। हेलन
आज भी 83 साल के होते हुए भी स्वस्थ है और वहीदा रहमान, आशा पारेख की खास सहेली
है। सलीमखान और हेलन को कोइ बच्चे नही है लेकिन दोनो ने ‘अर्पिता’ नाम की बच्ची को
अडोप्ट किया है।
1960 से लेकर 1970
तक सलीम खान ने बोलीवुड मे फिल्मो मे छोटी छोटी भुमिकाये की जिस मे बी ग्रेड की
फिल्मे भी शामिल थी।
बोलीवुड के इतिहास
मे जिस फिल्म से वेस्टो-इंडियन म्युजिक की उत्पत्ती हुइ वो फिल्म ‘तीसरी मंझिल’ मे
सलीम खान ने मुख्य हीरो शम्मी कपूर के दोस्त की भुमिका निभाइ थी।
सलीमखान अपने
माता-पिता की सब से छोटी संतान थे और जब वे 14 साल के थे तब ही मा-बाप की म्रुत्यु
हो गइ थी। मा की म्रुत्यु हुइ तब सलीम केवल 9 साल के थे और मा को टीबी की बीमारी
होने से सलीमखान बहुत ही कम उन के साथ रहे थे। सलीम के पिताजी इन्दौर मे इंडीयन
इम्पीरियल पुलीस मे डी.आइ.जी. रेंक तक पहुचे थे इसिलिये सलीम भी सरकारी नौकरी की
तलाश मे थे।
सलीमखान के दादा
अफघानिस्तान से भारत भाग आये थे और इन्दौर मे ही जा बसे थे। इंडियन ब्रीटीश आर्मी
मे जुडे थे सलीमखान के दादाजी ये बात है कुछ 1800 दशक की। इन्दौर मे होलकर कोलेज
मे बीए करते वक़्त उन के भाइओ ने सलीमखान को कार भी दीलाइ थी। वे अकेले स्टुडंट थे
जो कार लेकर कोलेज जाया करते थे।
बहुत कम लोगो को पता
है की सलीमखान एक अच्छे क्रिकेटर थे और किस्मत ने साथ दिया होता तो शायद भारत की
ओर से खेलते भी। इसिलिये सलीमखान ने अपने बेटे सलमान खान जो आजकल सब से हिट हीरो
है उन को क्रिकेटर बनाना चाहते थे। सलीमखान खुद अच्छे पायलोट भी थे। उन के कोलेज
के दोस्तो ने सलीमखान को कहा था की उन का लुक अच्छा है तो सलीम को फिल्मो मे ट्राय
करनी चाहिये। इसिलिए सलीमखान बोलीवुड की ओर मुडे।
सलीमखान ने खुद कहा
है की एक बार सुपरस्टार राजेशखन्ना उस के पास आये और बोले,”सलीम, मै ‘आशिर्वाद’
नाम का बंगला खरीद रहा हु और उस के लिये मुजे मि. देवर ने बहुत बडी रकम साइनिंग
एमाउंट के तौर पर दी है। जिस फिल्म के लिये मुजे ये एमाउंट मीली है वो मुल फिल्म
‘दीवा चियाल’ की रीमेक है। लेकिन उस फिल्म की स्क्रिप्ट हकीकत से कोशो दुर है। अगर
तुम एक अच्छी स्क्रिप्ट बनाते हो तो हम दोनो को नाम और पैसा मिलेगा और मुजे
आशिर्वाद बंगलो के लिये पुरी रकम मिलेगी।“ और सलीमखान ने जो स्क्रिप्ट लिखी वो
फिल्म ब्लोक बस्टर साबित हुइ फिल्म का नाम था ‘हाथी मेरे साथी’।
1970 के दशक मे सलीम
खान ने जावेद के साथ मिलकर डकैत के विषय को लेकर बोलीवुड मे क्रांती की शुरुआत की।
मसाला फिल्म जिसे कहते है उस की शुरुआत इन दोनो ने मिलकर की थी। ‘सरहदी लुटेरा’
फिल्म मे सलीमखान ने आखरीबार बतौर एक्टॅर काम किया और उस फिल्म के दौरान ही उस की
मुलाकात जावेद अख्तर से हुइ। जावेद अख्तर उस फिल्म मे क्लेप बोय का काम कर रहे थे।
क्युकी उस फिल्म मे दोनो मे दोस्ती गहरी होती चली गइ। और आखिरकार दोनो ने मिलकर
काम करना तय किया। सलीमखान उन दिनो मे अबरार अल्वी के के आसिस्टंट की नौकरी मे थे
और जावेद अख्तर ने कैफी आझमी का आसिस्टॅंट बनना स्वीकार किया क्युकी अबरार अल्वी
और कैफी आझमी दोनो पडौसी थे।
1971 मे ‘अंदाज’
फिल्म से सलीम-जावेद ने लिखना शुरु किया जिस मे राजेश खन्ना, हेमा मालीनी और शम्मी
कपूर मुख्य भुमिका मे थे। वैसे सलीमखान अकेले थे तब भी लिखते थे और 1969 से अकेले
लिखना शुरु किया था फिल्म ‘दो भाइ’ से और बाद मे जावेद के साथ मिलकर लिखना शुरु कर
दिया। जिस मे सलीमखान स्टोरी बनाते और डायलोग जावेद अख्तर लिखते थे। अमिताभ बच्चन
की फिल्मी केरीयर को सलीमखान की जबरदस्त स्टोरीस की वजह से उचे आसमान को छुने लगी
थी। ‘शोले’ फिल्म को ‘ब्रिटिश फिल्म इंस्टिट्युट’ मे पहली पादान पर और 2002 के
जनरल पोल मे टोप 10 मे शामिल कर दिया गया है।
सलीम-जावेद की जोडी
ने इगो की वजह से 1982 मे अलग होने से पहले दो कन्नड फिल्म के साथ कुल मिलाकर 24
फिल्मे लिखी जिस मे 20 सुपर हिट रही और 4 फ्लोप जिस मे ‘काला पत्थर’ और ‘शान’ जैसी
फ्लोप फिल्मे भी थी। लेकिन अलग होने के बावजुद पहले लिखी आखरी स्क्रिप्ट ‘मि.
इंडिया’ भी सुपर हिट रही थी।
2014 मे सलीमखान को ‘पद्म्श्री’
एवार्ड से नवाजा गया और 6 फिल्मफेयर एवार्ड आज तक सलीमखान को मिल चुके है जिस मे 1983
मे फिल्म ‘शक्ती’ के लिये बेस्ट स्क्रीन प्ले, 1976 मे ‘दीवार’ के लिये बेस्ट
स्क्रीनप्ले, बेस्ट स्टोरी, बेस्ट डायलोग और 1974 मे ‘जंजीर’ के लिये बेस्ट
स्क्रीनप्ले और बेस्ट स्टोरी के लिये।
सलीम-जावेद जोडी
पहले स्क्रिप्ट राइटर रहे जिन्हे स्टारडम प्राप्त हुवा।
जावेद अख्तर से अलग होने के बाद भी कुछ 13
स्क्रिप्ट्स सलीमखान ने लिखी। लेकिन ‘अकेला’, ‘तूफान’ जैसी फ्लोप फिल्म के बाद
सलीमखान ने लिखना कम कर दिया। फिर भी कुछ स्क्रिप्ट्स लिखी। ‘बागबान’ फिल्म के
लिये अमिताभ बच्चन ने सलीम और जावेद दोनो को रीक्वेस्ट किया था तो दोनो ने अलग अलग
ही सही लेकिन स्क्रिप्ट और डायलोग्स मे अपना अपना योगदान दिया और वो फिल्म सुपरहिट
रही थी।
सलीमखान को 2014 मे ‘पद्म्श्री’ के लिये बोला गया
था लेकिन सलीमखान ने कहा वो कम से कम ‘पद्मभुषण’ से सन्मानित होने चाहिये और
इसिलिये पद्मश्री के लिये सलीमखान ने मना कर दिया था।
2.
जावेद
अख्तर : जन्म 17 जनवरी 1945 ग्वालियर (उस समय का ग्वालियर
स्टेट हाल मध्य प्रदेश) हाल उम्र :77 साल
जावेद अख्तर कवि, गीतकार, स्क्रीन राइटर, और राजकारण
मे भी एक्टिव है।
उन के पिताजी जान निशार अख्तर बोलीवुड के
प्रख्यात गीतकार थे और उर्दु शायर भी थे। जावेद अख्तर के नानाजी श्री मुझ्तार
खैराबादी एक प्रख्यात कवि थे। उन के दादाजी के बडे भाइ बिस्माइल खैराबादी, और उन
के परदादा श्री फझ्ल-ए-हक इस्लाम के स्कोलर रह चुके थे और 1857 के अंग्रेजो के
खिलाफ विप्लव मे सपोर्ट भी किया था।
जावेद का मुल नाम ‘जादु’ था जो उन के पिताजी ने
एक काव्य लिखा था उस मे से लिया गया था.. ‘लम्हा लम्हा कीसी जादु का फसाना होगा...’।
ये ‘जादु’ शब्द से वो इतना जुड चुके थे की उन
को ‘जावेद’ नाम दिया गया। उन का बचपन लखनौ मे गुजरा और भोपाल की मशहुर सैफिया
कोलेज से ग्रेज्युएशन किया।
जावेद अख्तर ने भी दो शादीया की 1. हनी इरानी (पुराने
जमाने की प्रख्यात अभिनेत्री) के साथ 1972 मे जो 1985 मे तल्लाक से खत्म हुइ और 2.
कैफी आझमी की बेटी और प्रख्यात अदाकारा शबाना आझमी से 1984 मे।
हनी इरानी से जावेद अख्तर को दो संतान रत्न
प्राप्त हुए जिन का नाम आज आप सब की जुबान पे है...क्युकी दोनो आज की पीढी के प्रख्यात
निर्देशक है..1. ज़ोया अख्तर और 2. फरहान अख्तर (हीरो एवम दिग्दर्शक)। हनी इरानी भी
प्रख्यात एक्ट्रेस रह चुकी है और शबाना आझमी भी प्रख्यात क्लासिक अदाकारा है।
1970 दशक मे ऐसा कोइ ट्रेंड बोलीवुड मे नही था
की जो स्क्रिप्ट राइटॅर हो वो ही डायलोग लिखे या कोइ क्रेडिट उन को नही मिलती थी।
ये काम किया सुपरस्टार राजेश खन्ना ने। उन्होने सलीम-जावेद को एक किया और फिर
बोलीवुड मे स्क्रिप्ट राइटर और डायलोग को महत्व मिलने लगा और पर्दे पर फिल्म के
टाइटल्स मे सुनहरे अक्षरो मे दोनो का नाम लिख जाने लगा।
जावेद अख्तर ने क्या क्या लिखा वो सलीमखान की
स्टोरी मे लिख चुका हु। लेकिन जावेद साहब ने अपने बेटे फरहान अख्तर के साथ मिलकर
जो स्क्रिप्ट लिखी वो फिल्म बनी 1. दिल चाहता है...2. लक्ष्य... और 3. रोक ओन...
जब की अपनी बेटी ज़ोया के साथ लिखी वो फिल्म बनी....1.ज़िन्दगी न मिलेगी दोबारा...
1999 मे जावेदअख्तर को ‘पद्मश्री’ और 2007 मे ‘पद्मविभुषण’
से सन्मानित किया गया। उन के काव्य संग्रह ‘लावा’ को भारत का उर्दु का दुसरा उच्च
साहित्य एवार्ड ‘साहित्य एकाडमी एवर्डॅ’ से भी 2013 मे सन्मानित किया गया।
16 नवम्बर 2009 मे उन्हे राज्यसभा की सिट भी दी
गइ थी।
जावेद अख्तर को इस के अलावा निम्नलिखित नेशनल एवार्डॅ
से भी सन्मानित किया गया है।
क्रमांक |
एवार्डॅ |
साल |
केटॆगरी |
किस काम के लिये |
1 |
नेशनल एवार्ड |
1996 |
बेस्ट लीरीक्स |
साज |
2 |
नेशनल एवार्ड |
1997 |
बेस्ट लीरीक्स |
बोर्डॅर |
3 |
नेशनल एवार्ड |
1998 |
बेस्ट लीरीक्स |
गोडमधर |
4 |
नेशनल एवार्ड |
2000 |
बेस्ट लीरीक्स |
रेफ्युजी |
5 |
नेशनल एवार्ड |
2001 |
बेस्ट लीरीक्स |
लगान |
फिल्म फेयर एवार्ड की लिस्ट
क्रमांक |
एवार्डॅ |
साल |
केटॆगरी |
गीत |
फिल्म |
1 |
फिल्म फेयर एवार्डॅ |
1995 |
बेस्ट लीरीक्स |
एक लडकी को देखा |
1942-ए-लव स्टोरी |
2 |
फिल्म फेयर एवार्डॅ |
1997 |
बेस्ट लीरीक्स |
घर से नीकलते ही |
पापा कहते है |
3 |
फिल्म फेयर एवार्डॅ |
1990 |
बेस्ट डायलोग्स |
- |
मै आजाद हू |
4 |
फिल्म फेयर एवार्डॅ |
1998 |
बेस्ट लीरीक्स |
संदेशे आते है |
बोर्डॅर |
5 |
फिल्म फेयर एवार्डॅ |
2001 |
बेस्ट लीरीक्स |
पंछी नदिया पवन.. |
रेफ्युजी |
6 |
फिल्म फेयर एवार्डॅ |
2002 |
बेस्ट लीरीक्स |
राधा कैसे ना जले |
लगान |
इस के अलावा मीर्ची एवार्ड भी तीन बार जावेद
साहब जीत चुके है। और भी कइ बार नोमिनेट कइ जगहो पर हुवे है पर एवार्डॅ नही मिल
पाया था।
1983 के बाद सलीमखान से अलग होने के बावजुद
जावेद अख्तर ने 2006 तक करीब 14 फिल्मो की स्क्रिप्ट और डायलोग्स लिखे जो सब की सब
सुपर हिट रही थी जिस मे बेताब, दुनिया, मशाल, सागर, अर्जुन, मेरी जंग, डकैत, मै अजाद
हू, खेल, रूप की रानी चोरो का राजा, प्रेम, कभी ना कभी, लक्ष्य, डोन- ध चेज बीगींस
अगेइन।
जावेद अख्तर इस के अलावा नीजी जीवन मे अनगीनत
काव्य कोष, शायरी लिखते रह्ते है और आज भी उतने ही सक्रिय है। इंडियन आइडोल से अभी
अभी विख्यात गायिका हुइ है वो अरुणिमा को चालु शो मे जावेद साहब ने एक बार लीरीक्स
बनाकर दिये थे जिसे अनु मलिक ने चालु शो मे संगीत बना दिया और अरुणिता ने गा दिया
था। मतलब जावेद अख्तर आज भी खडे खडे लीरीक्स, शेर, शायरी बना लेते है।
·
हेलन : हेलन एन रीचार्डसन। जन्म : 21 नवम्बर 1938
रंगून बर्मा (म्यानमार)
एंग्लो इंडियन पिता ज्योर्ज डीस्मायर और बर्मीज
माता मेरीलीन की संतान हेलन के एक भाइ रोजर और एक बहन जेनीफर थे। दुसरी वर्ल्ड वोर
मे पिताजी की म्रुत्यु हो गइ और 1964 के फिल्मफेयर के इंटरव्यु दौरान हेलन ने
बताया था की जापान ने बर्मा पर उस वर्ल्ड वोर मे जीत लेने के बाद वे लोग अन्य लोगो
के साथ भागे थे और 1943 मे आसाम के दिब्रुगढ पहुचे।
हजारो मील्स और कम कपडे और बीना खाना खाये और
बीना पैसे कइ दिनो तक जंगल और कइ गावो से गुजरे थे। अचानक उन्हे ब्रीटिश सेना मीली
और उन्होने ट्रांसपोर्ट की व्यवस्था कर दी थी। दिब्रुगढ पहुचते पहुचते जितने लोग
बर्मा से भागे थे उस मे से आधे ही जिन्दा बचे थे। कोइ बीमार हो गया और मर गया था
तो कोइ भुख से मर गया था। जो बचे थे उन्हे दिब्रुगढ की होस्पिटल मे दाखिल कर दिया
गया। हेलन और उन की माताजी के शरीर मे केवल हड्डिया ही बची थी और भाइ की हालत काफी
नाजुक थी। दो महिने के बाद उन्हे होस्पिटल से रीहा कर दिया गया और वे लोग कलकत्ता
(हाल का कोलकाटा) पहुचे जहा पर स्मोलपोक्ष की वजह से हेलन के भाइ की म्रुत्यु हो
गइ।
हेलन की माताजी ने नर्स के तौर पर काम करना
शुरु किया लेकिन उतनी आय नही मिलती थी की पुरे फेमिली का गुजारा हो सके। इसिलिये
हेलन ने अपनी स्कुल छोड दी।
केवल 19 साल की उम्र मे हेलन को पहली फिल्म
मीली, लेकिन बडी फिल्म मीली ‘हावरा ब्रीज’। शक्ति सामंता (आराधना फेम) के दिगदर्शन
मे और अशोक कुमार (गायक किशोर कुमार के बडे भाइ और बोलीवुड मे दादामोनी के नाम से
प्रख्यात थे) की इस सस्पेंस थ्रीलर फिल्म मे उसे एक गाना मिला ‘मेरा नाम चीन चीन
चु...’ जो गायिका गीता दत्त ने गाया था और इस गीत के डांस से हेलन रातो रात फेमस
हो गइ। 1951 से 1958 तक हेलन केवल बेकग्राउंड डांसर की हेसियत से ही काम किया करती
थी। उस दौरान जितनी भी फिल्मे हेलन ने की उन सब मे प्ले बेक सिंगर गीता दत्त रहती
थी और फिल्म मे उस गीत के बाद हेलन को मर जाना होता था। मतलब फिल्म मे हीरो के
लिये एक अच्छी मदद करती हुइ लडकी का किरदार ही हेलन को मिलता था। बोलीवुड मे हेलन
को अपनी खास दोस्त और डांसर कुक्कु ले आइ थी।
1960 से 1970 के बीच हेलन जिस गीत पर डांस करती
थी उस गीतो को आशा भोसले ने गाया। खास कर के 1965 मे सस्पेंस थ्रीलर फिल्म ‘गुमनाम’
मे एक गीत ‘गम छोड के मनाओ रंग रेली...अरे मान लो जो कहे कीट्टी केली’ इस गीत और
पुरे फिल्म मे कीट्टी केली के किरदार से हेलन को बेस्ट सपोर्टिंग एक्ट्रेस का
फिल्म फेयर एवोर्डॅ नोमिनेशन मिला। (जीत नही पाइ थी।
शम्मी कपूर के ‘चाइना टाउन’ ‘जंगली’ वगैरह
फिल्म मे उन की जोडी अच्छी जमी। खास कर के सायर बानो की प्रथम फिल्म और शम्मी कपूर
की फिल्म ‘जंगली’ मे ‘ऐयया करु मै क्या सुक्कु सुक्कु’ गीत ने धुम मचा दी।
‘यम्मा यम्मा’ गीत चाइना टाउन और ‘ओ हसीना
जुल्फो वाली जाने जहा’ तीसरी मंझिल ये दो अहम गानो मे भी हेलन ने काफी अच्छा डांस
कर लिया। एक तरह से कहा जाये तो आइटॅम सोंग की प्रणेता बोलीवुड मे केवल हेलन ही
है।
1973 मे पेरीस, लंडन और होंग कोंग मे हेलन ने
स्टेज शो किये जो जबरदस्त हीट रहे।
1983 मे ओफिशियली बोलीवुड मे से रीटायरमेंट से
पहले जब वो सलीम खान से मीली उस के बाद सलीम-जावेद की स्क्रिप्ट मे एक केब्रेट
गाना जरुर रहता था। या ये कहिये की सलीम-जावेद को जो सफलता मीली थी उस के बाद इन
राइटर जोडी ने हर एक डायरेक्टर पर जोर डाला था की अगर स्क्रिप्ट लिखेंगे तो
कम्पलसरी एक केब्रेट गाना होगा ही। और ये गाने मे हेलन को लेना कम्पलसरी होता था।
जैसे ‘डोन’ का ‘ये मेरा दिल प्यार का दीवाना’ और आज की फिल्म ‘शोले’ मे ‘मेहबूबा मेहबूबा’।
1996 मे ‘खामोशी-ध म्युजिकल’ और 2000 मे फिल्म ‘महोब्बते’
मे हेलन ने गेस्ट रोल भी किया।
जिस फिल्म से सलमान खान और ऐश्वर्या राय प्यार
मे गीरे थे वो संजय लीला भणसली की फिल्म ‘हम दिल दे चुके सनम’ मे भी सलमान खान की
माता का रोल भी हेलन ने किया।
सलीमखान जो शादीशुदा थे उस के साथ शादी करने के
बाद हेलन ने खान फेमिली को इतना प्यार से बान्ध लिया की सलीमखान इज्जत के साथ दोनो
बीवीयो के साथ घुम फिर सकते थे। इतना ही नही सौतेले संतान को हेलन ने इतना प्यार
दिया की अरबाज, सलमान और सोहैल खान ये तीनो भाइ हेलन को अपनी सगी माताजी जैसा
प्यार देते है।
हेलन को 1980 मे ‘लहु के दो रंग’ फिल्म के लिये
बेस्ट सपोर्टिंग एक्ट्रेस का एवार्ड फिल्म फेयर का मिला था। उस के अलावा 4 बार वो
नोमिनेट हुइ थी लेकिन जीत नही पायी। 1999
मे फिल्म फेयर लाइफ टाइम एचीवमेंट एवार्ड से भी हेलन को नवाजा गया था। 2009 मे
हेलन को ‘पद्म्श्री’ से भी नवाजा गया है।
जेरी पिंटो नाम के लेखक ने हेलन के उपर एक बुक
लीखी थी जिस का नाम है ‘ध लाइफ एंड टाइम्स ओफ एन एच-बोम्ब’ जिन्हे 2007 मे बेस्ट
बुक ओन सिनेमा फोर नेशनल फिल्म एवार्ड का खिताब मिला था।
·
संगीतकार
राहुल देव बर्मन (आर. डी. बर्मन यानी
पंचमदा)
प्रख्यात संगीतकार सचिन देव बर्मन (एस. डी.
बर्मन) (सचिन देव बर्मन जो मराठी लेखक रमेश तेंडुलकर को बहुत पसंद थे इसिलिये रमेश
जी ने अपने तीसरे सुपुत्र का नाम ‘सचिन’ रखा जो आगे जाकर भारतीय क्रिकेट और
वैश्विक क्रिकेट का भगवान बन गया) ऐसे एस. डी बर्मन के सुपुत्र आर.डी. बर्मन का
जन्म 27 जुन 1939 मे कललत्ता (हाल कोलकाटा) मे हुवा और म्रुत्यु 4 जनवरी 1994 मे
54 साल की आयु मे मुम्बइ मे हो गइ।
राहुल देव बर्मन को ‘म्युजिकल सायंटिस्ट’ या ‘किंग
ओफ बोलीवुड म्युजिक’ के नाम से भी जाना जाता था। 1960 से 1990 तक करीब 331 फिल्मो
मे उन्होने संगीत दिया। पंचमदा ने लगभग गीत अपनी पत्नी आशा भोसले और गायक
किशोरकुमार को लेकर ही बनाये और करीब 331 गीत अपनी साली साहिबा यानी प्यारी
लतादीदी के लिये बनाये।
उन की माताजी का नाम था ‘मीरा देव बर्मन’ यानी
नी दासगुप्ता जो एक लीरिस्ट थी। उन के दादी जी ने उन का प्यार से नाम रखा था ‘तबलु’।
जब राहुल देव बरमन छोटे थे और रोते थे तब उन की
आवाज हिन्दी क्लासिकल म्युजिक के पाचवे अक्षर ‘पा’ और जी स्केल के नोटेशन जैसा
सुनाइ देता था। जो पाचवे स्क्ले डीग्री मे सुनाइ देता था इसिलिये उस का निक नेम ‘पंचमदा’
हो गया । दुसरी कहानी ये भी है की वे जब रोते थे तो पाच अलग अलग नोटिफिकेशन गले से
निकलता था इसिलिये उस का नाम ‘पंचमदा’ है और तीसरी कहानी ये भी कहती है की जब उन
का जन्म हुवा तब अशोककुमार ने राहुल को बार बार संगीत सुरावली ‘सारेगम’ का पाचवा
अक्षर ‘पा’ बोलते हुवे सुना इसिलिये उन का नाम ही ‘पंचमदा’ रख दिया गया।
‘बालीगंज हाइस्कुल’ कोलकाटा से राहुल ने शिक्षा
प्राप्त की और उस्ताद अली अकबर खान से ‘सरोद’ भी सीखी। पिताजी सचिन देव बर्मन
ख्यातनाम संगीतकार तो थे ही इसिलिये बचपन से संगीत के दावपेच सिखने लगे थे।
केवल 9 साल की उम्र मे राहुल देव बर्मन ने अपनी
पहली धुन बनाइ ‘ए मेरी टोपी पलट के’ नाम का गीत का संगीत का उपयोग उन के पिताजी ने
फिल्म ‘फंटुश’ मे लिया। गुरुदत्त की फिल्म और अब तक की सब से बडी क्लासिकल फिल्म
जिसे माना जाता है वो फिल्म ‘प्यासा’ मे एक कोमेडी गाना मोहम्मद रफी साहब ने गाया
और कोमेडियन जोनी वोकर पर फिल्माया गया था और वो गाना आज भी उतना ही मशहुर है....’सर
जो तेरा चकराये या दिल डुबा जाये...आजा प्यारे पास हमारे काहे गभराये काहे
गभराये..तेल मालिश’। इस धुन को राहुल ने बनाया था बहुत छोटी उम्र मे।
आर डी बर्मन ने अपने कॅरियर की शुरुआत
बतौर एक सहायक के रूप में की। शुरुआती दौर में वह अपने पिता के संगीत सहायक थे।
उन्होंने अपने फिल्मी कॅरियर में हिन्दी के अलावा बंगला, तमिल, तेलगु, और मराठी में भी काम किया है। इसके अलावा उन्होंने अपने आवाज
का जादू भी बिखेरा।उन्होंने अपने पिता के साथ मिलकर कई सफल संगीत दिए, जिसे बकायदा फिल्मों में प्रयोग किया जाता था।
संगीतकार के रूप में आर डी
बर्मन की पहली फिल्म 'छोटे
नवाब'
(1961) थी जबकि पहली सफल फिल्म ‘तीसरी मंजिल’ (1966) थी।
तीसरी मंझिल मे पहलीबार राहुल ने
पाश्चात्य और भारतीय संगीत का मिक्स अप किया। उतना ही नही इस फिल्म से उस ने टाइटल
म्युजिक ऐसा बनाया की बाद मे तो हर एक दिग्दर्शक अपनी फिल्म के लिये अलग अलग टाइटल
म्युजिक बनाने के लिये जोर देने लगे। इसिलिये ‘शोले’, दीवार, जंजीर, जोनी मेरा नाम,
शान, सागर, समुन्दर, जैसी फिल्मो के टाइटल म्युजिक बेमिसाल बने हुवे है।
1969 मे प्रख्यात दिग्दर्शक शक्ति
सामंता एक फिल्म बना रहे थे नाम था ‘आराधना’। इस का म्युजिक एस. डी. बर्मनदा को
दिया गया था। कुछ गाने कम्पोज भी हो चुके थे। जैसे ‘गुन गुना रहे है भवरे’, ‘यहा
कौन है तेरा मुसाफिर’ वगैरह। अचानक सचीनदा की तबियत खराब हुइ और फिल्म का बाकी का
संगीत पंचमदा को दिया गया।
अब पंचमदा इंडो-वेस्टर्न म्युजिक मे
बीलीव करते थे और पिता सचिनदा प्योर हिन्दुस्तानी। शक्ति सामंता को विश्वास मे
लेकर पंचमदा ने तीन गाने की धुन जबरदस्ती से बनाइ और किशोरकुमार के पास गवा भी
लिया और सीधा फिल्म मे घुसा भी दिया।
सचिनदा को पता नही चला की बेटे ने
क्या कर दिया है। बाद मे पता चला तो नाराज भी हुवे लेकिन पंचमदा ने डाट सुन ली
लेकिन अपने पिताजी को विश्वास रखने के लिये बोल दिया। जब फिल्म रीलीज हुइ और वे
तीनो गाने इतने सुपर हिट हुवे की राजेश खन्ना का केरीयर ही उस फिल्म और उन तीन
गानो से आसमानो तक पहुच गया।
वो दो गाने थे ‘मेरे सपनो के रानी कब
आयेगी तु...’ और ‘रुप तेरा मस्ताना...’ और ‘कोरा कागज था ये मन मेरा...’ आप गौर
कीजीयेगा केवल ये तीन गाने का संगीत और बाकी के आराधना फिल्म के गाने कितने अलग
अलग लगते है।
एक समय ऐसा भी आया की पंचमदा को एक
दिन मे तीन तीन गाने की धुन बनानी होती थी। बाद मे जब कल्याणजी आणंदजी फिल्मो मे
आये तो उन्हे फिल्मे मिलनी कम होती गइ। एक वक़्त ऐसा भी आया की पंचमदा को फिल्मे
मिलनी बंध ही हो गइ।
एक फिल्म उसे मिली जिसमे पंचमदा ने
अपना दिल निचौड दिया और आशा को बोला था की ये मेरी फिल्म जरुर हीट होगी और मै वापस
आउंगा। लेकिन वो फिल्म रीलीज हुइ उस के पहले ही वो चल बसे। वो फिल्म थी ‘1942-अ लव
स्टोरी’। और वो फिल्म का संगीत सुपर हीट रहा लेकिन ये उन की आखरी फिल्म थी।
पंचमदा की एक खुबी थी वो छोटी सी छोटी
चीज का इस्तेमाल संगीत के लिये किया करते थे। मै आप को दो उदाहरण देता हु जैसे की
फिल्म ‘शोले’ मे गीत ‘मेहबूबा मेहबूबा’ की शुरुआत मे एक स्टार्टिंग संगीत आता है।
उस मे पंचमदा ने खाली सोडा बोटल का उपयोग अपने होठो से किया है। इस का एक वीडीयो
भी उपलब्ध है..
https://www.youtube.com/watch?v=MODnHu2PXzg
फिल्म ‘सत्ते पे सत्ता’ मे अमिताभ डबल
रोल मे है। दुसरा किरदार विलेन है जिस का नाम फिल्म मे ‘बाबु’ है। फिल्म मे जब
बाबु की एंट्री होती है तब अलग सा ही बेकग्राउंड म्युजिक बजता है। इस संगीत के
लिये पंचमदा ने एक लडकी ‘अनीटी पिंटो’ को बुलाया और कहा की गले मे पानी भरो। उसे
थुको भी नही और गले के नीचे भी उतरने नही देना है। गले मे पानी भर के आवाज
नीकालो...उस का भी वीडियो है यु ट्युब पर..
https://www.youtube.com/watch?v=7cozxBK5snw
ऐसे महान संगीतकार को सलाम....
बस शोले के दुसरे भाग मे आज इतना
ही...अगले भाग मे अमिताभ बच्चन, जया भादुरी के बारे मे जानेंगे और शोले कैसे शुट
हुइ, पुरी स्टोरी, और मेरे कुछ खास अनुभव रहे है शोले को लेकर वो कहानी अगले
सप्ताह शोले के तीसरे भाग मे...तब तक विदा लेता हु...पढना जारी रखियेगा...।
# नोनस्टोप राइटिंग चेलेंज भाग-10
🤫
01-Jul-2022 11:59 AM
👍👍👍👍👍👍👍🙏
Reply
PHOENIX
01-Jul-2022 08:41 PM
Thanks.....
Reply
Pallavi
18-Jun-2022 09:01 PM
Beautiful presentation
Reply
PHOENIX
18-Jun-2022 09:55 PM
Thank you so much.
Reply
Aniya Rahman
18-Jun-2022 08:46 PM
Osm
Reply
PHOENIX
18-Jun-2022 09:54 PM
Thank you
Reply